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कविता

चूना

वीरेन डंगवाल


जहाँ पर पड़ा वहीं पर खिल गया चूना
रोनी दीवार पर आहा क्या जगर-मगर कीन्हा ।
हल्दी के संग लगा चोट पर
दे दिया मलहम का काम
कहीं पड़ा अकड़ पान-सुर्ती में तो
फाड़ डाला सब जीभ-गाल का चाम
बना सगुन ब्याह-सादी में
नाली तक के गुन गाए
भोली डिजायनों में भोली आत्माओं के करतब दिखलाए
चमकाया

 


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